Wednesday, April 22, 2009

क्या लिखें

आजकल बोझिल सी लगती है ज़िन्दगी,
हमारी दिलचस्पी हो गई है कुछ कम,
दिल के आवाज़ को मिल नही पाई जब जुबां
तो सोचा चलो कुछ लिख ही चलें हम,

पर आख़िर क्या लिखें,
कैसे लिखें कुछ ऐसा, जो घर कर जाए लोगों के दिलों में
करे दे मजबूर उन्हें सोचने पर
और शायद हमें जानने के लिए भी,

क्या हम लिखें, की कितनी हसीं है ये दुनिया,
और देखना चाहते है हम तमाम रंग-ओ-रूआब इसके
या फ़िर लिख दे की बहुत हो गया अब,
और हम तंग आ गए हैं इसकी आज़माइश से...

या लिख दे हम उन रिश्तों के बारे में
जो देते है हमारी शख्सियत को वजूद
या हम बात करें उन बे-मतलब रिश्तों की
जिनका ना होना ही शायद होता बोहोत खूब

क्या हम ये लिखें
की हम में है ललक कुछ कर दिखाने की
या फ़िर लिख दें की ठहर सी गई है हमारी ज़िन्दगी
और हम उम्मीद खोते जा रहे हैं ,इसके आगे जाने की

और ये तो लिख ही देने दो हमें,
के किस कदर हम डूबे हैं उनके प्यार में
पर शायद ये न लिख पाएं हम
के सोचते हैं , कब तक खड़े रहें इंतज़ार में ..

लिख तो बहुत कुछ देते हम,
जो लिखना ही होता हर मर्ज़ की दवा,
पर ये एक ख्वाब की शुरुआत तो है ही शायद,
और जो इसकी तावीर हो जाए,
तो बात ही क्या...